खो-खो कैसे खेले और इसके rules क्या है ?
क्या आप जानते हो खो-खो क्या और कैसे खेलते है ? नहीं , तो कोई बात नहीं तोह यह आर्टिकल आपके लिए ही हैं। इसको आप ध्यान से आखिरी तक पढ़े |
परिचय खो-खो का-
खो-खो मैदानी खेलों के सबसे प्राचीनतम रूपों में से एक है जिसका उद्भव प्रागैतिहासिक भारत में माना जा सकता है। मुख्य रूप से आत्मरक्षा, आक्रमण व प्रत्याक्रमण के कौशल को विकसित करने के लिए इसकी खोज हुई थी।
खो-खाे का जन्मस्थान बड़ौदा कहा जाता है। यह गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश आदि प्रदेशों में अधिक खेला जाता है, किंतु भारत के अन्य प्रदेशों में भी इसका प्रचार अब बढ़ रहा है। यह खेल सरल है और इसमें कोई खतरा नहीं है। पुरुष और महिलाएँ दोनों समान रूप से इस खेल को खेल सकते हैं।
खो-खो खेल में न किसी गेंद की आवश्यकता होती है, न बल्ले की। इसके लिये केवल १११ फुट लंबे और ५१ फुट चौड़े मैदान की आवश्यकता होती है। दोनों और दस-दस फुट स्थान छोड़कर चार चार फुट ऊँचे, लकड़ी के दो खंभे गाड़ दिए जाते हैं और इन खंभों के बीच की दूरी आठ बराबर भागों में इस प्रकार विभाजित कर दी जाती है कि दोनों दलों के खिलाड़ी एक दूसरे की विरुद्ध दिशाओं की ओर मुँह करके अपने अपने नियत स्थान पर बैठ जाते हैं। प्रत्येक दल को एक-एक पारी के लिए सात सात मिनट दिए जाते हैं और नियत समय में उस दल को अपनी पारी समाप्त करनी पड़ती है। दोनों दलों में से एक-एक खिलाड़ी खड़ा होता है, पीछा करने वाले दल का खिलाड़ी विपक्षी दल के खिलाड़ी को पकड़ने के लिए सीटी बचाते ही दौड़ता है। विपक्षी दल का खिलाड़ी पंक्ति में बैठे हुए खिलाड़ियों का चक्कर लगाता है। जब पीछा करने वाला खिलाड़ी उस भागने वाले खिलाड़ी के निकट आ जाता है, तब वह अपने ही दल के खिलाड़ी के पीछे जाकर 'खो' शब्द का उच्चारण करता है तो वह उठकर भागने लगता है और पीछा करने वाला खिलाड़ी पहले को छोड़कर दूसरे का पीछा करने लगता है।
पहले इस खेल का कोई व्यवस्थित नियम न था। खेल की लोकप्रियता के साथ इसके नियम बनते-बिगड़ते रहे। १९१४ ई. में पहली बार पूना के डकन जिमखाना ने अनेक मैदानी खेलों के नियम लिपिबद्ध किए और उनमें खो-खो भी था। तब से उसके बनाए नियम के अनुसार, थोड़े स्थानीय हेर-फेर के साथ यह खेल खेला जाता है।
खो-खो की पहली प्रतियोगिता पूना के जिमखाने में १९१८ ई॰ में हुई। फिर सन् १९१९ में बड़ौदा के जिमखाने में भारतीय स्तर पर प्रतियोगिता का आयोजन हुआ। तब से समय-समय पर इस खेल की अखिल भारतीय स्तर पर प्रतियोगिताएँ होती रहती हैं।
-- खेल का मैदान -- खो-खो का क्रीड़ा क्षेत्र आयताकार होता है। यह 27 X 16 मीटर होता है। मैदान के अंत में दो मुक्त आयताकार क्षेत्र होते हैं। आयताकार की भुजा 16 मीटर और दूसरी भुजा 1.50 मी॰ होती है। इन दोनों आयताकारों के मध्य में दो लकड़ी के स्तम्भ होते हैं। केन्द्रीय गली 24 मी॰ लम्बी और 30 सैंटीमीटर चौड़ी होती है।
खो-खो में इस्तेमाल होने वाले जरुरी शब्द
- स्तम्भ या पोस्ट:-मध्य लेन के अंत में दो स्तम्भ गाड़े जाते हैं जो भूमि से 1.20 से 1.25 मीटर के बीच ऊँचे होते हैं। स्तम्भ का व्यास 9 -10 सैंटीमीटर होता है। स्तम्भ की परिधि 28.25 - 31.4 सैंटीमीटर होता है।
- केन्द्रीय गली या लेन:- दोनों स्तम्भों के मध्य में केन्द्रीय गली होती है। यह 24 मी॰ लम्बी और 30 सैंटीमीटर चौड़ी होती है।
- क्रॉस लेन:- प्रत्येक आयताकार 16 मी॰ लम्बा और 35 सैंटीमीटर चौड़ा होता है वह केन्द्रीय लेन को समकोण (90°) पर काटता है। यह स्वयं भी दो सर्द्धकों में विभाजित होता है। इसे क्रॉस-लेन कहते हैं।
- स्तम्भ रेखा:- केन्द्र से गुजरती हुई क्रॉस-लेन और केन्द्रीय लेन के समानांतर रेखा को स्तम्भ रेखा कहते हैं।
- आयताकार:- स्तम्भ रेखा का बाहरी क्षेत्र आयताकार कहलाता है।
- परिधियाँ:- केन्द्रीय लेन तथा बाहरी सीमा निश्चित करने वाली दोनों आयताकारों की रेखाओं से 7.85 मी॰ दूर दोनों पार्श्व रेखाओं को परिधियाँ कहते हैं।
- अनुधावक या चेज़र:- वर्गों में बैठे खिलाड़ी अनुधावक कहलाते हैं। विरोधी खिलाड़ियों को पकड़ने या छूने के लिए भागने वाला अनुधावक या चेज़र सक्रिय अनुधावक कहलाता है
- धावक:- चेज़रों या अनुधावकों के विरोधी खिलाड़ी 'धावक' या 'रनर' कहलाते हैं।
- खो देना:- अच्छी 'खो' देने के लिए सक्रिय अनुधावक को बैठे हुए अनुधावक को पीछे से हाथ से छूते ही 'खो' शब्द और ऊँचे तथा स्पष्ट कहना चाहिए। छूने और 'खो' कहने का समय एक साथ होना चाहिए।
- फ़ाऊल:- यदि बैठा हुआ या सक्रिय अनुधावक किसी नियम का उल्लंघन करता है तो वह फ़ाऊल होता है।
- दिशा ग्रहण करना:- एक स्तम्भ से दूसरे स्तम्भ की ओर जाना दिशा ग्रहण करना है।
- मुँह मोड़ना:- जब सक्रिय अनुधावक एक विशेष दिशा की ओर जाते समय अपने कंधे की रेखा 90 के कोण से अधिक दिशा को मोड़ लेता है तो इसे मुँह मोड़ना कहते हैं। यह फाऊल होता है।
- निवर्तन या पलटना:- किसी विशेष दिशा की ओर जाता हुआ सक्रिय अनुधावक जब विपरीत दिशा में जाता है तो उसे निवर्तन या पलटना कहा जाता है। यह फाऊल होता है।
- पांव बाहर:- जब रनर के दोनों पाँव सीमाओं से बाहर भूमि को छू लें तो उसके पाँव बाहर माने जाते हैं उसे आऊट माना जाता है।
खो-खो का खेल मैदान
खो-खो के नियम
- एक्टिव चेजर के शरीर का कोई भी भाग केंद्र पट्टी को लगना चाहिए।
- अगर चेजर रनर को हाथ से छू लेता है तो रन आउट हो जाता है।
- चेजर अथवा रनर बनने का फैसला Toss द्वारा किया जाता है।
- बैठे हुए चेजर को Active चेजर पीछे से ही खो दे सकता है।
- जब तक बैठे हुए चेजर को खो नहीं दी जाती, वह अपनी जगह से नहीं उठ सकता।
- एक्टिव चेजर द्वारा खो देने पर ही वह चेजर के स्थान पर बैठेगा।
- एक्टिव चेजर का मुँह है उसके दौड़ने की दिशा में होना चाहिए।
- खो मिलने के बाद चेजर उस दिशा में ही जाएगा जो दिशा उसने वर्ग से उठने के बाद केंद्र – पट्टी को पार करके अपनाई हो। एक्टिव चेजर यदि खो न देता तो वह केंद्र – पट्टी के दूसरी तरफ पोल के ऊपर से घूम कर आ सकता है।
- चेजर अपने वर्ग में इस तरह बैठेगा कि रनर के मार्ग में कोई रुकावट ना आए। यदि उसकी रुकावट से रनर आउट हो जाता है तो उसे आउट नहीं माना जाता।
- एक्टिव चेजर के लिए पोल-लाइन को पार करना जरूरी है।
- एक्टिव चेजर बैठे हुए चेजर को पीछे से को देने के लिए, हाथ और को देने का एक्शन एक साथ करेगा।
- एक्टिव चेजर के अतिरिक्त बाकी चेंज अपने वर्ग में इस प्रकार बैठेगे कि उनके मुंह एक तरफ ना हो।
खेल के अधिकारी
मैच के प्रबंध के लिए निम्न अधिकारी नियुक्त किए जाते हैं।
- दो अंपायर
- एक रेफ़री
- एक टाइम – कीपर
- एक स्कोर
- राष्ट्रीय स्पर्धा
- राष्ट्रीय कुमार स्पर्धा
- राष्ट्रीय निम्नस्तरीय कुमार स्पर्धा
- आंतरशालेय (उच्च्माध्यमिक) स्पर्धा
- आंतरशालेय (माध्यमिक) स्पर्धा
- आंतरशालेय प्राथमिक स्पर्धा
- राष्ट्रीय महिला स्पर्धा
- आंतर्विद्यापीठ स्पर्धा
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